सन् 1895 में मारकोनी द्वारा तरंगो की खोज ने सूचना प्रसार को नए आयाम दिये । भारत में पहली बार रेडियो का प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो के जरिये 1935 से किया गया, जिसमे संगीत से जुड़े कार्यक्रमो व समाचारो को सुनाया जाता था । अगले दशको में विविद भारती, बीबीसी लन्दन के बाद मुंबई, दिल्ली, चैन्नई (मद्रास)जैसे शहरो से क्षेत्रीय भाषाओं के चैनलों का प्रसारण किया जाने लगा, इनमे गीत-संगीत, समाचार व शैक्षणिक कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी गई ।
बहुत से देशों में रेडियो (आकाशवाणी) ने अपनी ख़ास पहचान बनाई ।
भारत में सितम्बर 1959 (अनियमित प्रसारण) के बाद 1965 से टेलीविजन का नियमित प्रसारण आकाशवाणी के अंतर्गत किया गया (1976 से आकाशवाणी से अलग कर दिया गया) इसकी लोकप्रियता के चलते छः दशको में 400 से ज्यादा चैनल प्रसारित किये जाने लगे है ।
टेलीविजन की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही रेडियो के अंतिम दिन करीब माने जाने लगे थे।
लेकिन टी. आर. पी. और पूंजी का खेल सीमाएं पार करने लगा तब एफ.एम रेडियो प्रसारण शुरू होने के साथ ही रेडियो का एक तरह से पुनर्जन्म हुआ । एफ.एम रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1977 से मद्रास में हो चुकी थी । इसमें अब तक के प्रसारणों से स्पष्ट और बेहतर आवाज़ थी । 1993 में पहली बार पांच शहरों के लिए टाइम स्लांट बेचे गये वहीँ 1999 में निजीकरण के लिए फेज वन पॉलिसी घोषित की गई तथा 90 शहरों में 336 चैनल 10 सालो के लिए वैध प्रसारण लाइसेंस दिए गये । जिसमें 4 फीसदी कुल राजस्व का था सरकार के पास जमा एक मुश्त प्रवेश शुल्क 10 फीसदी बतौर सालाना शुल्क सरकार लेगी । इसके संचालन में सालाना 1.25-5.00 करोड़ रूपये खर्च तथा कमाई एकमात्र विज्ञापन से होने वाली आय, 2004 में रेडियो के विज्ञापन खर्च में 2.9% आंकी गई । वहीँ रेडियो इंड्रस्टी का 2006 में राजस्व (अनुमानित) 3.68 अरब रूपये रहा ।
कुछ निजी कंपनियों द्वारा एफएम सेवा शुरू किये जाने से रेडियो की लोकप्रियता लोगो में और अधिक बढ़ गई, मधुर और आकर्षक आवाज़ के धनी युवाओं के लिए यह अच्छे कैरियर का विकल्प भी बनता जा रहा है जिसके माध्यम से वे स्टूडियो में बैठे-बैठे ही अपनी आवाज़ के जादू से लाखों करोड़ों लोगो तक अपनी पहुँच बना लेते है और लोकप्रिय होने के साथ साथ उन्हें अच्छा रोजगार भी मिल जाता है रेडियो मिर्ची, माय एफएम, रेडियो सिटी, रेड एफएम, बिग एफएम जैसे चर्चित प्राइवेट रेडियो चैनल ने देश के छोटे बड़े शहरों में लोगो के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली ।
छोटे से समुदाय या कस्बे की जरूरतों के मुताबिक रेडियो पर किये जाने वाले प्रसारण ने सामुदायिक रेडीयो का रूप ले लिया ।
भारत में 1995 में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद हवाई तरंगो को सार्वजनिक करने का फैसला लिया गया । भारत में भले ही 300 से ज्यादा चैनल देखे जा सकते है और आधे दर्जन से ज्यादा निजी न्यूज़ चैनल जहाँ जन्म ले चुके है । लेकिन एक भी समुदायों के लिए पूरी तरह से समर्पित नहीं दिखता । ऐसे में जन सेवा का जो बीड़ा दूरदर्शन ने उठाया था । वह अब सामुदायिक रेडियो के जरिये संभव होता दिखने लगा है ।
सुनामी के दौरान भी यही रेडियो बड़ा कामगार साबित हुआ । फोन की तारें टूट जाने पर पोर्टब्लेयर से भारती प्रसाद नामक युवती ने हैम रेडियो का सहारा लिया और भारतीयों को पोर्टब्लेयर की स्थिति से लगातार अवगत कराये रखा। अकेले आकाशवाणी ने इसे 13000 संदेश प्रसारित कर खोये हुए लोगो को ढूंढने में मदद की । इसी के बाद सूचना प्रसार मंत्रालय ने अंडमान में भी सामुदायिक रेडियो लाने पर विचार करना शुरू कर दिया । आने वाले समय में सरकार भी अपनी नीति को और लचीला बनाकर लोगो की भागीदारी बढ़ाना चाहती है, पंचायती राज, शिक्षा, सेहत से लेकर पर्यावरण तक हर मुददे पर सामुदायिक रेडियो की आवाज को गौर से सुना जाने लगा है ।
3 अक्टूबर 2014 से भारत के प्रधानमन्त्री द्वारा “मन की बात” कार्यक्रम की शुरुआत की गयी, जिसमें वे भारत के नागरिकों को संबोधित करते है, यह अपने आप में अनोखा कार्यक्रम है जो रेडियो की लोकप्रियता को भी दर्शाता है ।
भारत में अन्ना विश्वविद्यालय को भारत का पहला कैम्पस रेडियो शुरू करने का सौभाग्य है । भारत में चार शैक्षणिक संस्थानों के पास सामुदायिक रेडियो का लाइसेंस है और जल्द ही यह संख्या एक दर्जन होने वाली है, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया कैम्पस रेडियो की शुरुआत कर चुके हैं और नई दिल्ली स्थित भारतीय जन संचार, संस्थान भी इस कड़ी में शामिल हो चूका है ।
इसी तरह राजस्थान और झारखंड में सामुदायिक रेडियो, लोगों की रोजमर्रा की समस्यायों को हल करने में जुटा है बीते कुछ वर्षों में श्रोताओं के मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए वर्ल्ड स्पेस सेटेलाइट रेडियो बिना विज्ञापन के मासिक शुल्क पर प्रसारण किया जा रहा है फिलहाल भारत में 16 Genres में 40 से अधिक चैनल्स है जिसमें बालीवुड, अंग्रेजी, संगीत, समाचार, खेल और कॉमेडी के चैनल्स शामिल है इसे खरीदने के बाद सब्सक्रिप्शन चार्ज देना होता है । 2009 में वर्ल्ड स्पेस के भारत में लोकप्रियता घटने के बाद इसे 2010 से सारेगामा और टिम्बर मिडिया ने दोबारा शुरू किया । इसके लगभग 15 चैनल्स जो बिना विज्ञापन (DTH platform D2H) पर भी उपलब्ध है । 16 दिसम्बर 2004 से डीडी डायरेक्ट प्लस पर टीवी चैनलों के साथ रेडियो चैनल भी उपलब्ध है। अंडमान और निकोबार को छोड़कर इसके सिग्नल पूरे भारत में एक रिसीवर प्रणाली से मिलते हैं। इस सेवा के ग्राहकों की संख्या 100 लाख से कई अधिक है। इतना ही नहीं अब रेडियो इन्टरनेट पर भी उपलब्ध है, हम कहीं भी किसी भी कार्यक्रम को लाइव या रिकार्डेड सुन सकते है ।
बहरहाल रेडियो की इस शानदार वापसी पर जश्न मनाना होगा क्योंकि रेडियो की यह जादुई छड़ी एक आम इंसान की सुध भी ले रही है और उसके छोटे छोटे सपनो को मदमस्त पंख लगाने में मदद भी कर रही है यह इस बात को भी जताता है कि यह छोटा सा डिब्बा रंग बिरंगे बक्से को चुनौती देने की स्थिति तक आ पहुंचा है ।